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बाय गांव का ऐतिहासिक दशहरा मेला: सांप्रदायिक एकता, अनूठी परंपरा और सांस्कृतिक उत्सव
बाय, जिला सीकर , राजस्थान, दशहरा का त्योहार यहां एक खास और ऐतिहासिक रूप में मनाया जाता है, जिसमें रावण का पुतला नहीं जलाया जाता बल्कि रंग-बिरंगे वस्त्रों में सजीव चित्रण कर राम द्वारा रावण वध की अनूठी परंपरा निभाई जाती है। दक्षिण भारतीय शैली से प्रभावित बाय का दशहरा मेला साम्प्रदायिक एकता का प्रतीक है, जिसमें पूरे गांव सहित आस-पास के गांवों के लोग बड़े उत्साह से भाग लेते हैं[1][2][3][4][5]।
### परंपरा की शुरुआत
बाय गांव का दशहरा मेला 171 वर्षों से निरंतर मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत 18वीं शताब्दी में स्थानीय पंडितों और समाज के प्रबुद्धजनों द्वारा की गई थी, जिसके पीछे उद्देश्य सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक धरोहर और एकता को उजागर करना था। दशहरे के महोत्सव में स्थानीय रामलीला मंडल द्वारा रावण, मेघनाथ और कुम्भकरण के जीवंत पात्रों की अद्भुत झांकी निकाली जाती है, जिसमें लोग दल, तलवार, ढाल और धनुष के साथ पारंपरिक परिधान में रणभूमि के दृश्य को साकार करते हैं। इस युद्ध के मैदान में राम और रावण की सेना सार्वजनिक रूप से आमने-सामने होती है और ग्रामीणों के बीच उत्साह का वातावरण देखते ही बनता है[1][2]।

### मेला आयोजन की विशेषताएं
– रावण का वध प्रतीकात्मक रूप से किया जाता है, जिसमें किसी पुतले को नहीं जलाया जाता, बल्कि सजीव चित्रण प्रस्तुत किया जाता है।
– गाजे-बाजे और पारंपरिक नृत्य व गीतों के साथ लक्ष्मी नारायण मंदिर तक विजय यात्रा निकाली जाती है
– मेले में भव्य झांकियां, राम-रावण युद्ध की जीवंत झलकियां और धार्मिक उत्सव का माहौल रहता है।
– दशहरा के बाद पूरी रात राम-भरत मिलाप, नृसिंह लीला आदि धार्मिक नाटक मंचित किए जाते हैं।
– पूजा समितियों, महिला मंडलों, स्काउट समूहों और व्यापारी वर्ग के सहयोग से मेले का संचालन किया जाता है।
– नर्सिंग लीला में विशेष झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं, जिसमें भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, सीता माता, हनुमान जी, गिरजा माता, बजरंग दल, चंद्रमा दल, टाइगर दल आदि की पारंपरिक झलकियां देखने को मिलती हैं[3][4]।

### सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व
बाय दशहरा मेला सांस्कृतिक एकता का अनूठा उदाहरण है। यहां सभी जाति, धर्म और समुदाय के लोग धूमधाम से भाग लेते हैं और दशहरा के इस पर्व को आपसी सद्भावना के साथ मनाते हैं। सामाजिक समरसता और धार्मिक भावनाओं को बढ़ावा देने के लिए यहां हर वर्ग के लोग सक्रिय योगदान देते हैं। विशेष रूप से नाच, गाने, लोककला, नृत्य, और पारंपरिक संगीत के बीच बच्चों, युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों की भागीदारी अद्भुत रहती है। मेला परिसर में स्थानीय व्यापार, हस्तकला, पारंपरिक खाद्य पदार्थों की दुकानें सजी रहती हैं[5]।

### धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम
दशहरा के दिन लक्ष्मी नारायण मंदिर में सामूहिक पूजा, धार्मिक प्रवचन, आरती और प्रबंध समिति की ओर से विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। शाम को विजय यात्रा के दौरान भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना भी की जाती है। रात भर धार्मिक जागरण और रामलीला मंचन होता है, जिसमें पूरे गांव के लोग सहभागी बनते हैं। ग्राम पंचायत, सामाजिक संगठन और मेले की समिति सभी कार्यक्रमों के सफल आयोजन में सक्रिय योगदान देते हैं।
### ऐतिहासिक दृष्टि और महत्त्व
बाय दशहरा मेला न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश में सांस्कृतिक धरोहर की मिसाल है। इसकी ऐतिहासिकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां की रामलीला शैली देश के अन्य क्षेत्रों से बिलकुल अलग है। स्थानीय विद्वानों, वरिष्ठ नागरिकों और पंडितों के अनुसार बाय क्षेत्र में दशहरा पूर्वजों के समय से ही सामाजिक एकता और भाईचारे को बढ़ाने का मुख्य पर्व होता आया है। समय-समय पर राजनीतिक हस्तियां, अधिकारी, मंत्रीगण व प्रतिष्ठित लोग भी मेले में भाग लेते रहे हैं, जिससे इसकी प्रतिष्ठा और बढ़ जाती है।
### दशहरा के दिन की कुछ उल्लेखनीय गतिविधियां
– पूरी गांव और समीपवर्ती गावों के लोग सुबह से तैयारी करते हैं और राम-रावण सेना में अपने दल के लिए परंपरागत वेशभूषा में तैयार होते हैं।
– युद्ध के मैदान में राम और रावण की सेना आमने-सामने होती है और प्रतीकात्मक युद्ध का आयोजन होता है। इसमें तलवार, धनुष-बाण और ढाल के साथ वीरता दिखाने के लिए समूह प्रदर्शन होते हैं।
– रावण के वध के बाद पूरे गांव में विजय यात्रा निकाली जाती है, जिसमें भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की आरती होती है।
– युद्ध समाप्ति के बाद महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सामूहिक रूप से नृत्य, गीत और भजन गाते हैं तथा गांव में खुशहाली का वातावरण फैल जाता है।
– रात्रि जागरण में नृसिंह लीला, राम-भरत मिलाप और विविध धार्मिक नाटक होते हैं, जिससे नई पीढ़ी को संस्कृति और धार्मिक परंपराओं की शिक्षा दी जाती है।
### मेले की सामाजिक-आर्थिक भूमिका
दशहरा मेले से स्थानीय व्यापारियों, कारीगरों और हस्तशिल्प के लोगों को अच्छा व्यवसाय मिलता है। मेले में पारंपरिक खाद्य पदार्थों, खिलौनों, कपड़ों और हस्तशिल्प की दुकानों पर भीड़ देखने को मिलती है। यहां व्यापार तथा स्थानीय उत्पादों का आदान-प्रदान होता है। बाहर से आए लोग बाय की सांस्कृतिक विरासत से परिचित होते हैं और यहां की व्यवसायिक गतिविधियों से जुड़े अवसर मिलते हैं।
### समकालीन संदर्भ में दशहरा मेला
तकनीकी और सामाजिक परिवर्तन के बावजूद, बाय का दशहरा मेला अपनी परंपराओं को जीवित बनाए हुए है। आयोजन समिति, ग्राम पंचायत, पुलिस प्रशासन, महिला मंडल, युवा समूह तथा व्यापारी वर्ग मिलकर शांति, सुरक्षा और सुव्यवस्थित संचालन की जिम्मेदारी निभाते हैं। गांव की नई पीढ़ी भी सोशल मीडिया एवं डिजिटल माध्यमों से मेले की गतिविधियों का प्रचार-प्रसार करती है, जिससे दूर-दराज़ स्थानों तक इसकी प्रसिद्धि बढ़ रही है।
### निष्कर्ष
बाय गांव का दशहरा मेला भारत की सांस्कृतिक विविधता, सामाजिक एकता और धार्मिक परंपरा का मेल है, जिसे देखने देश-विदेश से लोग आते हैं। 171 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा में जहां राम-रावण सेना आमने-सामने होती है, वहीं प्रतीकात्मक युद्ध, झांकियां, नृत्य-गीत, धार्मिक आयोजन, व्यापार गतिविधियां और भाईचारे का संदेश मिलता है। बाय का दशहरा मेला सांस्कृतिक धरोहर और विरासत का अद्भुत उदाहरण है, जिसे हर वर्ष और भी भव्यता के साथ मनाया जाता है।
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यह लेख बाय गांव के दशहरा मेले की ऐतिहासिकता, सांस्कृतिक महत्त्व और सामाजिक भूमिका पर केंद्रित है। इसमें मेले की परंपरा, आयोजन, समकालीन संदर्भ, सामाजिक-आर्थिक महत्व और आयोजन में भागीदारी जैसे सभी पहलुओं को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।
(यह लेख ऊपर दी गई पत्रिका, समाचार और छवि सामग्री पर आधारित है। यदि इसमें और अधिक ऐतिहासिक तथ्य या किसी समाजशास्त्रीय दृष्टि से जानकारी जोड़नी हो, तो डेटा उपलब्ध होने पर इसे आगे बढ़ाया जा सकता है।)
Sources
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[2] image.jpeg https://ppl-ai-file-upload.s3.amazonaws.com/web/direct-files/attachments/images/77701454/b304ff1d-83f4-42d1-91b3-5ec326aa55c4/image.jpeg
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[4] image.jpeg https://ppl-ai-file-upload.s3.amazonaws.com/web/direct-files/attachments/images/77701454/a6247883-87c0-4005-b6db-0fef4ff293c6/image.jpeg
[5] image.jpeg https://ppl-ai-file-upload.s3.amazonaws.com/web/direct-files/attachments/images/77701454/55ef8799-1341-4ff8-a1e4-33244d5b27ee/image.jpeg